शहर की जनता पर व्याज सहित लगभग 65 करोड़ का कर्ज,इसका जिम्मेदार कौन…..? जनता भी इस बात से शायद अछूती-यह कैसी नगर पालिका झाबुआ की कार्य-योजना…………………..
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नगर पालिका हुई पाई पाई के लिए मोहताज-करोड़ो की जमीन कौड़ियों के दाम बेचेंगे,तो हश्र यही होगा
मुख्यमंत्री नल-जल योजना बन गयी कर्ज-जल योजना
झाबुआ शहर की जनता पर व्याज सहित लगभग 65 करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है,वो भी बिना किसी से उधार लिये ही। इसका जिम्मेदार कौन है…..? शहर की जनता भी शायद इस बात से अछूती है। नगर पालिका की कार्य योजना आमजन की समझ से परे है। पहले उत्कृष्ट सड़क पर लगभग 12 करोड़ का खर्च किया,वो भी बैंक से कर्ज लेकर,फिर उसके बाद मुख्यमंत्री नल-जल योजना जो पहले लगभग 35 करोड़ की थी,लेकिन प्रारंभ होते-होते 44 करोड़ पर पहुच गयी। इस योजना के लिए भी बैंक से कर्ज लिया गया। आपको बता दे की मूलभूत सुविधाये मुहैया कराना तो नगर पालिका की जिम्मेदारी होती है।
उत्कृष्ट सड़क से लगभग प्रति नागरिक पर 3 हजार से अधिक का कर्ज………………….
जैसा का पूरा शहर जानता है उत्कृष्ट सड़क योजना सिर्फ नाम के लिए ही उत्कृष्ट सड़क थी,जो अंत: निष्कृष्ट सड़क योजना बन कर रह गयी। उत्कृष्ट सड़क योजना पर लगभग 12 करोड़ की राशि खर्च कर दी गयी वो भी बैंक से कर्ज लेकर एइस मान से प्रत्येक नागरिक पर 3 हजार से अधिक का कर्ज चढ़ गया है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी नुसार करार के अनुरूप ठेकेदार द्वारा इस योजना में लगभग 3 करोड़ के कार्य किये ही नही गए है। जिसमें मुख्यत: स्ट्रीट लाइट,नाली निर्माण,पेबर्स और बैठक बेंच है।
मुख्यमंत्री नल-जल योजना से प्रत्येक नागरिक पर 12 हजार का कर्ज फिर भी धरातल पर शून्य के बराबर………….
मुख्यमंत्री नल-जल योजना से प्रत्येक नागरिक पर 12 हजार का कर्ज चढ़ चुका है। जैसा की योजना का नाम है मुख्यमंत्री नल-जल योजना तो राज्य शासन से फण्ड आने के बजाय इसके लिए भी बैंक से कर्ज लिया गया है। यह हालात पूरे प्रदेश में है। उपरोक्त कर्जो का व्याज भर-भर कर नगर पालिका की,आज यह स्थिति हो गयी है की नगर का विकास तो ठीक उनके कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए भी झूझना पड़ रहा है। यह योजना प्रारंभ में 35 करोड़ की थी। योजना का क्रियान्वयन कौन करेगा….? इस बात की पीएचई और नगरपालिका के बीच खींचतान व इसका निराकरण करते-करते योजना 44 करोड़ तक पहुच गयी। इतना खर्च करने के बाद भी योजना धरातल पर शून्य के बराबर ही नजर आ रही है।
208 रुपये शुल्क वसूल रहे 24 घंटे पानी के नाम पर…………………..
जैसा की विदित है मुख्यमंत्री नल-जल योजना 24 घंटे जनता को पानी मुहैया करने की है। गौरतलब है कि जनता को सप्ताह में मात्र 3 दिन ही पानी मिल रहा है,वह भी मात्र पौने से एक घंटे तक ही। इस मान से पूरे माह में 12 घंटे पानी के लिए जनता से 208 रुपये शुल्क वसूला जा रहा है। जो की प्रतिदिन दस बॉटल बिसलेरी के बराबर है।
नल कनेक्शन कितने है शहर में…? उसका अपना कोई लेखा-जोखा ही नही…………
शहर में नल कनेक्शन कितने है इसका शायद नगर पालिका के पास अपना कोई लेखा-जोखा ही नही है। पीएचई विभाग ने जो कनेक्शनों की सूची दी थी,वही सूची शायद नगर पालिका में आज तक चल रही हैं। नगर पालिका ने इस सूची का कोई भी भौतिक सत्यापन ही नही किया। यदि वे ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ शहर में वार्ड-वाइज नल कनेक्शनों का भौतिक सत्यापन करे. तो दूध का दूध और पानी का पानी अपने आप अलग हो जाएगा। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ ईमानदार दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। यदि नगर पालिका ऐसा करती है,तो पक्का उनके सामने अनगिनत अवैध कनेक्शनों का एक बहुत ही बड़ा आश्चर्यजनक आंकड़ा खुद ब खुद सामने आ जाएगा।
अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे,तो कहा से आयेगा पैसा….?
हम एक छोटे से उदाहरण से बात करे तो शहर के बाजार बैठक का ठेका की,जो गत वर्ष लगभग 22 लाख रुपये में तय हुआ था,वह भी बिना किसी अमानत राशि के। उपरोक्त मूल राशि ठेकेदार द्वारा अभी तक जमा नही करवाई गयी और वह कहता फिर रहा आपसे जो बन पड़े वो कर लो। इस पर नगर पालिका की चुप्पी क्यों है…..? जबकि ठेकेदार का शहर में मकान और दुकान भी है। मजेदार बात किसी आमजन का बिजली का बकाया 10 हजार के ऊपर चला जाता है,तो कुर्की का सूचना-पत्र तुरंत भेज दिया जाता है। हमने पुराने जनप्रतिनिधियों से इस बारे में चर्चा की तो अधिकतर लोगों का कहना था कि जब बाजार बैठक का ठेका प्रतिवर्ष तय किया जाता है,तो नगर पालिका को उसकी एक सूची तैयार कर लेनी चाहिए। फिर प्रतिवर्ष इन सूची वालो से निश्चित राशि लेकर नवीनीकरण कर देना चाहिए। रही बात हाट बाजार की सप्ताह में एक बार उनको अपने 1 या 2 कर्मचारी की ड्यूटी राशि को वसूल करने में लगा देनी चाहिए। फिर प्रति वर्ष बाजार बैठक की आवश्यकता ही नही बचेगी। खबरे आ रही है कि इस वर्ष भी बाजार बैठक का ठेका तय करने की नगरपालिका द्वारा तैयारी चल रही है। फिर तो इसे पक्का अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर ही कहना पड़ेगा।
करोड़ो की जमीन बेच रहे कौड़ियों के दाम और लीज भी,परिणाम खुद हो गए पाई-पाई के लिए मोहताज……………..
मुख्यमंत्री नल-जल योजना कर्ज-जल योजना बन चुकी है। मामाजी लाडली बहन योजना में तो करोड़ो रुपये खर्च कर रहे,जबकि बैंकों के कर्ज की वे चिंता ही नही कर रहे। परिणाम शहर के प्रत्येक नागरिक पर लगभग 15 हजार से अधिक का कर्ज चढ़ चुका है। पिछले कई वर्षों से नगर पालिका करोड़ो की जमीन कौड़ियों केभाव बेच रही है ,यह बात सभी जानते भी है। शहर में नगर पालिका के भ्रष्टों और जनप्रतिनिधियों का यह खेल बेख़ौफ़ सतत चला रहा है। परिणाम स्वरूप इन षड्यंत्रकारियो की आय दिन दोगुनी और रात चौगुनी हो चुकी है। वही दूसरी ओर नगर पालिका को राजस्व के नाम पर मिलता है बाबाजी का ठुल्लू। अभी गत वर्ष ही जो जमीन कई वर्षों से कौड़ रोग से ग्रसित कौड़ियों के लिए आरक्षित थी,उसे भी नगर पालिका ने बेच मारा। लेने वाले ने उस पर एक आलीशान कॉम्लेक्स खड़ा भी कर दिया। मजेदार बात तो यह है कि उसमें से एक दुकान को उसने लगभग 1 करोड़ से ऊपर में बेच भी दी,जिसकी शायद रजिस्ट्री भी हो गयी और नामान्तरण भी कर दिया गया। इसमें भी भ्रष्टों के घर भरपूर भर दिए गए और हर बार की तरह नगर पालिका को मिला बाबाजी का ठुल्लू। मैं यदि लीज की बात करूं तो टंट्या भील काम्प्लेक्स,टाउन हॉल और यात्री प्रतीक्षालय की छतों को भी इन भ्रष्ट लोगों ने धन्ना शेठो को कौड़ियों के दाम पर जारी कर दी। शहर में नगरपालिका की लगभग 500 से अधिक दुकानें है, जिसकी जांच पूर्ण ईमानदारी से ये करे तो,वे पाएंगे की मूल लीज-धारक जिसे दुकान नगर पालिका ने लीज पर दी थी,आज उस दुकान पर पक्का किसी और का नाम दर्ज हुआ मिलेगा। मजेदार बात तो यह है कि नियमानुसार यदि किस लीजी को दुकान की जरूरत नही रहती है,तो उसे नगरपालिका को दुकान सौप कर अपनी अमानत राशि प्राप्त करना होता है ताकि उसकी दोबारा नीलामी कराई जा सके। विडंबना देखो मूल लीज-धारक यह न करते हुए किसी और को दुकान बेच देता है और नगर पालिका उसका नामान्तरण भी कर देती है। इसी अवैधानिक खेल के चलते अधिकतर दुकानें 5 से 6 बार बिक चुकी है, जिसका नामान्तरण भी बार-बार कर दिया जाता है। मेरा दावा है उपरोक्त सारी दुकानों और लीज की इमानदारी और सख्ती से निष्पक्ष जांच की जाय तो झाबुआ नगर पालिका भी सोने की चिड़िया बन जाएगी। उसे भविष्य में कभी भी पाई-पाई के लिए मोहताज नही होंना पड़ेगा। इसके बाद फिर पक्का सारे बाबाजी के ठुल्लूओ की भरमार भृष्टो और भामाशाह धन्ना शेठो के खातो में नजर आने लगेगी।
संजय जैन